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विचारार्थ
सोच , सपने और समाज
Saturday, February 16, 2008
कर्मवीर
सोने दो उन्हें ,
जिन्हें सोने की आदत है;
कर्मवीर हैं,
ज़रा सा इस गुण का दंभ-
सो,
सो रहे हैं;
इंसान
आदमी जो बन रहा है।
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कौन कहता है हवा पर पाँव रख सकते नहीं, आसमाँ छूने का ये शायद कोई अन्दाज हो।
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