Sunday, February 17, 2008

मैं , और युग्म

2007: उद्भव

है रुकी जहाँ भी धार शिलायें तोड़ो
पीयूष चन्द्रमाओं को पकड़ निचोड़ो
- दिनकर

ब्लाग और ओर्कुट

एक वर्ष पहले मैने पहली बार जाना कि ब्लाग क्या है । तब तक मैं यही समझता रहा कि कविता,

कहानी या अभिव्यक्ति का एकमात्र साधन कागज और कलम ही है । जिनके नाम बड़े हैं उनके लिए किताबों

वाला कागज़ और जिनका कोई नाम नहीं उनके लिये अपनी डायरी का पन्ना । जो डायरी से किताब तक

पहूँचने की जद्दोजहद में थे उनके इक्के दुक्के नाम अखबारों और पत्रिकाओं में दिख जाते थे । मैंने सोचा चलो

बन्द डायरी से अच्छा इन्टरनेट पर खुला पड़ा पन्ना , कम से कम कुछ भूले भटके लोग इधर भी आ कर

कुछ पढ़ लें । कुछ पन्नों पर लोग मिल जुल कर भी लिखते मिले , एक ऐसा ही एक पन्ना था 'मेरे

कवि मित्र 'जहाँ कुछ पाँच छः जन लिखते थे ।ओर्कुट में भी,कुछ कम्युनिटियों में लोग कवितायें लिखते थे

और सच में कुछ कवितायें चमत्कृत करने वाली होतीं थीं । कुछ कवितायें तो इतनीं उम्दा थीं कि दिनों तक

दिमाग में घूमतीं रहें , मिसाल के तौर पर 'तुम्हारी सलीब टूटे तो'नामक कविता , जिसे बमुश्किल

दस लोगों ने पढ़ा । अगर यही किसी बड़े नाम ने लिखी होती तो कुछ और किस्सा होता । खैर, विश्व

दीपक, मनीष वन्देमातरम , गिरिराज जोशी ,शैलेश भारतवासी , अवनीश गौतम आदि नाम भी

कम्यूनिटियों में लिखते थे ।

मेरे कवि मित्र > हिन्द युग्म सर्वश्रेष्ठ कवि और पाठक प्रतियोगिता

कुछ दिनों बाद ही ओर्कुट में पढ़ा कि कोई प्रतियोगिता है , कविताओं की

। हमें तो हर हाँडी में मुँह मारने की आदत है, तो यहाँ भी मार दिया । छः कवितायें आयीं , हमें

विजयी घोषित कर दिया गया । अचानक ही डायरी के पन्नों में अपना लिखा हुआ छुपा-छुपा कर रखने वाला

'कवि' और पाठक दोनों घोषित कर दिया गया । तभी लगा, कि उतना भी बुरा नहीं लिखता जितना मैं

समझता था । और इस तरह 'मेरे कवि मित्र ' , जो कि अब 'हिन्द युग्म ' बन गया था, पर

लिखने का लाइसेंस मुझे मिल गया । तब पता चला , कि मनीष , अवनीश , शैलेश , विश्व दीपक

,गिरिराज सभी इधर के ही वासी थे । तब बिलकुल अंदेशा नहीं था कि यह किस चीज की शुरुआत थी ।

दरअसल जहाँ-तहाँ छितराये दानों की पोटली बन रही थी , नयी प्रतिभाओं के लिये 'हिन्द युग्म' नाम

का 'रेड कार्पेट ' बिछ चुका था । बाद में गौरव सोलंकी, निखिल, विपुल , नीरज़ जैसे हीरे जुड़ते

गये और हार बनता गया ।

काव्य पल्लवन :
हिन्द युग्म एक नाम बन गया था । और धीरे धीरे , स्तर को बनाये रखने के लिये फ़िल्टर भी लगने

लगे । फ़िल्टर का यह भी परिणाम था कि सिर्फ़ अपने लिये लिखने वाले लोग जो बस ओर्कुट या निजी

ब्लाग पर कवितायें पोस्ट करते, हिन्द युग्म को कवितायें भेजने से हिचकते थे । काव्य पल्लवन नामक

कार्यशाला इस तरह के पाठकों को जोड़ने में मील का पत्थर साबित हुई और एक संस्करण में तीस कविताओं

का आना इस बात का प्रमाण था ।

यूनिसमीक्षा :
अपने स्तर को बनाये रखने के लिये युग्म ने यूनिसमीक्षा शुरु कराई । इसकी आवश्यकता भी थी ,

सारे कवि युवा थे और अनुभवी लोगों का जुड़ना और उनकी सलाह काफ़ी मायने रखती थी । इस से कवियों

और व्यक्तिगत तौर पर मुझे काफ़ी फ़ायदा हुआ । इस समय तक लोग एक दूसरे को जानने लगे थे और

फ़ोन वार्ताएँ और मीटिंग्स का सिलसिला शुरु हो चुका था,और एकता का बीज़ बोया जा चुका था । जहाँ

बाकी की ब्लागिंग दुनिया, अपने आप को सिद्ध करने में ही सिर खपा रही थी, वहाँ इधर के लोग सीखने

और सुधार के लिये तत्पर थे ।

बाल उद्यान और कहानी कलश :
साहित्य सिर्फ़ कविता नहीं । इस बात का ध्यान रखते हुए ये दो मंच और खोले गये । और इनको भी

उतना ही महत्त्व दिया जाने लगा , पर अब भी मुख्य मंच कविता का ही था । पर इस कदम से युग्म को

दो प्रिय सदस्य 'रजनीश 'जी और श्री सूरज प्रकाश जी मिले । तब तक कुमार विश्वास भी अतिथि कवि

के रूप में कविता श्रेणी में प्रकाशित होने लगे थे । बाल उद्यान ने ,अपने कर्मठ कार्यकर्ताओं के जोश के

कारण नयी मिसाल कायम करनी शुरु की । स्कूलों में बाल कवि सम्मेलन होने लगे ,और इस तरह के

समारोहों नें युग्म को नयी स्फ़ूर्ति दी ।

नेपाल साहित्य परिषद :
नेपाल साहित्य परिषद के सहयोग से हिन्द युग्म ने देश के बाहर भी पाँव फ़ैलाया । नेपाल में कवि

सम्मेलन का होना एक नयी उपलब्धि थी । पाठकों की सँख्या हजार प्रतिदिन से ज्यादा हो चुकी थी ,जो

इस बात को पुख्ता करती थी कि अब यह मंच महज़ एक ब्लाग नहीं रहा । नयी ऊँचाईयों की तलाश जारी

थी ।

आवाज़ और संगीतबद्ध कवितायें :
कवियों नें कविताओं को आवाज़ देनी शुरु की ,और तुषार जोशी ने अपनी कविता का संगीतबद्ध संस्करण

पेश किया । फ़िर तो ताँता लग गया और आवाज़ का आगाज़ हुआ । फ़िर सजीव सारथी , और निखिल ने

इस दिशा में बागडोर सँभाली और संगीतकारों और गायकों की खोज़ शुरु हो गयी ।

2008: उत्थान

पहला सुर और पुस्तक मेला :
विश्व पुस्तक मेला लगने वाला था । और हिन्द युग्म ने अपना स्टाल लगाने का निश्व्चय किया था ।

इसके लिये कुछ आकर्षक चाहिये था । सजीव सारथी , निखिल और अन्य के प्रयासों नें दस गीत तैयार

कर डाले थे । कविताओं को आवाज़ देकर उनको भी शामिल करने की तैयारी भी शुरु हो गयी और कुल

मिला कर एक एल्बम तैयार हो गया । अवनीश गौतम ने सुन्दर डिजाइन तैयार किया और लगे हाथ स्टाल

और विमोचन के समारोह हेतु जगह भी मिल गयी । श्री बाल्यान विमोचन के अतिथि बनने को राजी हो गये

और इस अपनी तरह के पहले और ऐतिहासिक अल्बम का विमोचन हुआ , और ऐसा हुआ कि गूँज

अखबारों और टीवी चैनलों तक पहुँच गयी । इसके बाद क्या हुआ , यह किसी से छुपा नहीं ।

आखिर है क्या हिन्द युग्म ?
इस बात की चर्चा होने लगी है कि आखिर हिन्द युग्म कया है , और इतनी सफ़लता कैसे ? युग्म महज

एक ब्लाग नहीं, एक कवियों का जमावड़ा नहीं और न ही यह अपनी वाह वाही लूटने वालों की जमात है ।
युग्म प्रगतिवाद की एक सोच है ,वह सोच जो यह मानती है, कि बुरा लिखने वाले भी सुधार करके अच्छा

लिख सकते हैं , सोच , जो कि अभिव्यक्ति का सम्मान करती है , भले ही वह साधारणतम लेखनी से

क्यों न निकली हो (काव्य पल्लवन इसका प्रमाण है )। युग्म प्रयासों का सम्मान करने वाला एक

व्यक्तित्व है , और महज पाठकों की वाहवाही लूटने के लिये लिखने वाले ब्लागों से अलग है , जो

'औसत' के 'अच्छा ' होने की संभावना का पूरा समर्थन करता है (यूनिसमीक्षा)। युग्म इस बात में

यकीन करता है कि युवा कवियों को तराशकर बड़े नामों में बदलना भी साहित्य की सेवा है बजाय कि किसी

जन्मजात 'दिनकर' और 'मुक्तिबोध' का इंतजार किया जाय; शायद हिन्दी साहित्य का वह युग अब

समाप्त हो गया (यूनिकवि और पाठक प्रतियोगिता)। युग्म मानता है कि कविता या साहित्य सिर्फ़ शब्दों

की मोहताज नहीं (कविताओं पर पेंटिंग, संगीत , और वीडियो का निर्माण, कहानियों को आवाज़ देना

)। युग्म आम आदमी को साहित्य से जोड़ना चाहता है , और आम आदमी के साहित्य को भी सम्मान

देना जानता है । मेरे अपने शब्दों में :
मैं युग्म, तुम्हारी भाषा का,
हिन्दी की धूमिल आशा का ;
मैं युग्म , एकता की संभव
हर ताकत की परिभाषा का

मैं युग्म, आदमी की सुन्दर
भावना जगाने आया हूँ
मैं युग्म, हिन्द के मस्तक को
कुछ और सजाने आया हूँ ।

मैं युग्म हिन्द की अभिलाषा का
छोटा सा कोना भर हूँ
तुम एक पुष्प बस दे जाओ
मैं भारत का दोना भर दूँ

अब आप भले ही इसे अब भी ब्लाग मानें , पर जिस दिशा में युग्म चल पड़ा है वह आपको यह मानने

के लिये मजबूर कर देगा कि नि:स्वार्थ भाव से मिल कर काम करने वाले कुछ तो कमाल कर सकते हैं ।
आज इतना ही ।

11 comments:

शैलेश भारतवासी said...

आलोक जी,

हिन्द-युग्म के पीछे के गूढ़ रहस्य आप ही बता सकते थे क्योंकि आपने मेरे कवि मित्र को 'हिन्द-युग्म' बनते देखा है। जो जानना चाहते हैं, उन्हें इसका लिंक दें।

Anita kumar said...

आलोक शंकर जी हिन्द-युगम का इतिहास आप ने बहुत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है, अच्छा लगा इस समूह के बारे में जान कर, मेरी शुभकामनाएं स्वीकार किजिए

तपन शर्मा Tapan Sharma said...

आलोक जी,
मैंने "मेरे कवि मित्र" को हिंद युग्म बनते तो नहीं देखा, परन्तु हिंदयुग्म को २० कवियों के प्रतियोगिता से ५० होते ज़रूर देखा है। और कविताओं से कहानी, बाल साहित्य, पेंटिंग, गायन सब बहुत नज़दीक से देखे हैं। जैसे आप ओर्कुट से पहुँचे थे, मैं भी गूगल समूह से वहाँ तक पहुँचा था। आप ने बहुत अच्छा वर्णन किया है, आपकी हिंद युग्म के साथ यात्रा का।
धन्यवाद।

विश्व दीपक said...

आलोक जी,
आपने बड़ा हीं दमदार लिखा है। हिन्द-युग्म के भूत से वर्त्तमान तक की यात्रा का आपने सटीक वर्णन किया है। अब मुझे विश्वास है कि हम ऎसे हीं साथ चलते-चलते भविष्य तक की राह तय करेंगे।
एक बार फिर से बढिया लेखन के लिए बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

सुनीता शानू said...

:)............

Pramendra Pratap Singh said...

शैलेश जी सही कह रहे है, आपने जो वर्णन किया वह प्रथमिक कड़ी ही कर सकता है। आपको हार्दिक बधाई।

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर हिंद युग्म यूं ही आगे बढे यही दिल से दुआ है शुक्रिया इतने सुंदर लेख के लिए अलोक जी !!

SahityaShilpi said...

आलोक जी!
प्रारंभ से वर्तमान तक हिन्द-युग्म के सफ़र का वर्णन बहुत सुंदर ढंग से किया है आपने. आभार स्वीकार करें.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आपने युग्म के बारे में निश्छल भाव से लिखा है। आशा है आगे भी आप अन्य विषयों पर बेबाक ढंग से अपनी राय रखते रहेंगे। बहुत-बहुत बधाई।

नीरज गोस्वामी said...

बहुत दिलचस्प वर्णन...वाह वा...
नीरज

anuradha srivastav said...

सही कहा आलोक, जितने कम समय में युग्म ने अपना वर्चस्व कायम किया और पहचान बनाई वो खुद एक उपलब्धि है। ऐसी संस्था से जुडे होने में गर्व भी है और सन्तुष्टि भी।